आदरणीय लेखक प्रयागी कैलाश द्वारा बेहद सादगी से लिखी गई उम्दा कहानी है – नीलिमा। जितनी सरल भाषा, उतना ही सरल स्वभाव है इस कहानी के किरदारों का। जिस तरह एक आम भारतीय नागरिक के जीवन को स्पेस और इसरो की गतिविधियों से जोड़ कर पेश किया गया है, वह सराहनीय है। बहुत ही खूबसूरती से कहानी वर्तमान में शुरू हो कर अतीत में होते हुए वापस वर्तमान में आती है और दिल को छू जाती है। ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रतीत होते किरदार पाठकों को उतनी ही सादगी से जीने के लिए प्रेरित करते हैं। साथ ही, जिस तरह दिलचस्प तरीके से एक बालिका के बाल-स्वप्न को साकार होते दर्शाया गया है, वह पाठकों को ये मानने पर मजबूर कर देता है कि वाकई सपने सच भी होते हैं। और जो सपना नीलिमा ने अपने बचपन में देखा था, वह तो लगभग हर बच्चा कभी न कभी अपने बचपन में देखता है। क्योंकि चांद-तारों को देख कर भला किस ने कभी नहीं सोचा होगा कि काश वहां जा सकते। धरती की हर भाग दौड़, चहल पहल से परे, दूर कहीं आकाश में।
शादी के बाद, बच्चे होने तक नीलिमा का खुशनुमा जीवन तो प्रेरणात्मक है ही, उस के बाद का संघर्ष भी कम प्रेरणात्मक नहीं। और उस के बाद एक बार फिर सफलता अपने बच्चों के माध्यम से। ये कहानी पाठकों को शुरू से आखिर तक बांध के रखने का दम रखती है। बस बात यही है कि पढ़ने वाले के मन में सादगी के लिए सम्मान होना चाहिए।
सच कहूं तो नीलिमा की कहानी पढ़ कर मुझे अपना भी बाल-स्वप्न याद आ गया। स्वर्गीय अंतरिक्ष-यात्री कल्पना चावला की मृत्यु का समाचार मिलने पर उनके बारे में पढ़-सुन कर मैं उस समय इतनी प्रेरित हुई थी कि उन्हीं की राह पर चलना चाहती थी। लेकिन सारे सपने सच होने के लिए नहीं होते। और मेरी ज़िंदगी किसी और ही दिशा में चलती रही। आज अरसे बाद अंतरिक्ष से संबंधित सामग्री पढ़ कर याद आया कि मुझे भी चांद-तारों की बातें कितनी भाती थीं। मुझे लगता है, लगभग हर पाठक को कुछ ऐसा ही महसूस हुआ होगा ये कहानी पढ़ कर।
नीलिमा की अपनी कहानी तो प्रेरणात्मक है ही, उस के साथ जाने के लिए जिन लोगों को चुना जाता है, उन की कहानी भी रोचक लगी। हालांकि इस चुनाव के बाद क्या होता है, वो मैं पाठकों के लिए एक राज़ ही रहने देती हूं सरल और साधारण शब्दों में लिखी गई ये कहानी बहुत ही मनमोहक है। आजकल जो आम तौर पर फूहड़ लेखन बिक रहा है और पसंद भी किया जा रहा है, उस सब के बीच कहीं इस तरह की सादगी भरी कहानी लिखना और अपने प्रिय पाठकों के बीच जारी करना बहुत ही धैर्य का काम है। नहीं तो इस तरह की पुस्तकें आजकल दुनिया की चमक-धमक में कहीं खो ही जाती हैं। और साथ ही खो जाता है ऐसे लेखकों का हौसला भी। आज के समाज को दोनों की ही बहुत जरूरत है। वरना यहां से नैतिकता जैसी बातें और संस्कार बस अंतर्ध्यान ही हुए समझिए। और जिस तरह का अपनापन, इस कहानी के किरदारों में नजर आया, वैसा तो अब अपने अंतिम चरण में है ही। ज़िंदगी की भाग-दौड़ में अक्सर 2 पल का सुकून देती हैं ऐसी कहानियां।
अंततः लेखक प्रयागी जी को बधाई देना चाहूंगी कि वह ऐसी कहानी लिखने में और पाठकों को रोचक सामग्री उपलब्ध कराने में सफल रहे। साथ ही, टीम एविंसपब पब्लिशिंग को भी इस पुस्तक के सफर में सहभागी बनने के लिए हार्दिक बधाई।
AUTHORS NAME: Azar
BOOK TITTLE: Situational Sins : A Carnal Damnation
REVIEWED BY : Akhila at Criticspace Journals
ORDER ON: AMAZON
RATING: 4/5